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}}
[[Category:ग़ज़ल]]
'''लेखन वर्ष: २००४ '''<br/><br/>
ज़िन्दगी तेरे साथ से क्या मिला जुज़ तन्हाई के<br/>
हर गाम इक मंज़िल है लोग मिले रुसवाई के<br/><br/>
अब भरोसा ही उठ गया दुनिया के लोगों पर से<br/>
अहले-जहाँ कब क़ाबिल थे सनम तेरी भलाई के<br/><br/>
चाक़ जिगर यूँ फड़का कि तड़प के फट गया<br/>
ऐजाज़े-रफ़ूगरी कैसा तागे टुट गये सिलाई के<br/><br/>
वो फ़ज़िर के रंग वो शाम का हुस्न अब कहाँ<br/>
चंद कुछ निशान थे सो मिट गये तेरी ख़ुदाई के<br/><br/>
हिज्र के रंग में सराबोर हैं अब मेरी रातें<br/>
काँटों के बिस्तर पे बिताता हूँ अब दिन जुदाई के<br/><br/>
करवटें बदल-बदल के मेरी रातें गुज़रती हैं<br/>
नसीब नहीं अब मुझे हुस्न तेरी अँगड़ाई के<br/><br/>
<poem>'''लेखन वर्ष: २००४/२०११''' ज़िन्दगी तेरे साथ से क्या मिला जुज़''': <ref>अतिरिक्त । '''ऐजाज़''': जादू । '''</ref> तन्हाई केहर गाम इक मंज़िल है लोग मिलते रुसवाई के अब तो भरोसा ही उठ गया दुनिया के लोगों सेअहले-जहाँ <ref>दुनिया वाले</ref> कब क़ाबिल थे सनम तेरी भलाई के ये चाक जिगर यूँ फड़का कि तड़पके फट ही गयाऐजाज़े-रफ़ूगरी!<ref>सिलाई की जादूगरी</ref> ताग़े टुट गये सिलाई के वो फ़ज़िर''': <ref>भोर । '''</ref> के रंग और वो शाम का हुस्न अब कहाँचंद कुछ निशान थे सो मिट गये तेरी ख़ुदाई के हिज्र''': <ref>विरह''</ref> के रंगों में सराबोर हैं अब मेरी रातेंकाँटों के बिस्तर पे बिताता हूँ दिन जुदाई के करवटें बदल-बदलकर मेरी रातें गुज़रती हैंनसीब नहीं अब मुझको हुस्न तेरी अँगड़ाई के {{KKMeaning}}</poem>