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Kavita Kosh से
मैं शायर-ओ-अदीब हूँ
मैं खुद से दूर हो गया
मैं आदमी ग़रीब हूँ
मैं एक अन्दलीब हूँ
फ़क़त तेरा हबीब हूँ
कभी - कभी ये लगता है तुझसे प्यार, मुझको तूसमझ न मैं अपना ही 'रक़ीब' हूँ
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