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बताऊँ क्यों अजीब हूँ / सतीश शुक्ला 'रक़ीब'
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बताऊँ क्यों अजीब हूँ
मैं शायर-ओ-अदीब हूँ
हैं आप मेरे हमसफ़र
मैं कितना खुशनसीब हूँ
मैं खुद से दूर हो गया
हुज़ूर से क़रीब हूँ
धनी हूँ बात का सनम
भले ही मैं ग़रीब हूँ
कफ़स में हूँ हयात की
मैं एक अन्दलीब हूँ
ए जानेमन यक़ीन कर
फ़क़त तेरा हबीब हूँ
ग़ज़ल ही सिन्फ़ है मेरी
ग़ज़ल ही का तबीब हूँ
कभी-कभी ये लगता है
मैं अपना ही 'रक़ीब' हूँ