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तेरी आत्मा को शांति मिले
प्रसव की पीडा पीड़ा सह
तूने बच्चों को जन्म दिया
अब ये आपस में लड़ते-झगड़ते हैं
तब भी उन्हें रोके बगैर
तू सब कुछ सहती है
उनके साथ खडी खड़ी रहती है !
अपनी हरी मृदुल कमीज़ पहनकर
श्रावण नन्हें फूल खोज रहा है
नदियाँ अपना प्रवाह तलाश रही हैं
सारा संतुलन बिगड बिगड़ गया है
जीवन का रथ-चक्र नाले में धॅंस गया है
जब तक मेरी चेतना में
मेरे दिल में विस्मयित सवेरा
उदित हुआ है !
तेरे पेडों पेड़ों की छाँव में
हमेशा मेरी कामना गाएँ चरती हैं
तेरे समुंदर से होकर
झूला डालना
पीपल के पत्तों के छोर पर नाचना
पंच दल पंचदल फूल बन इशारा देना
मंदिर का कबूतर बन
कुर-कुर रव करना
हज़ारों नदियों की लहर बनकर
आत्महर्ष के सुरों में सुर मिलाना
शिरीष , कनेर और बकुल बन
नए रंग-बिरंगे छातों को फहराना
घुग्घु का घुघुआना बन
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