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(81)
(83)
दिन -दिन दूनो देखि दारिदु , दुकालु ,
दुखु दुरितु दुराजु सुख-सुकृत सकोच है।
मागें पैंत पावत पचारि पातकी प्रचंड,
कालकी करालता, भलेको होत पोच है।
 
आपने ं तौ एकु अवलंबु अंब डिंभ ज्यों,
समर्थ सीतानाथ सब संकट बिमोच है।
 
तुलसी की साहसी सराहिए कृपाल राम!
नामकें भरोसें परिनामको निसोच है।।
 
(82)
 
मोह -मद मात्यो, रात्यो कुमति-कुनारिसों,
बिसारि बेद-लोक -लाज ,आँकरो अचेतु है।
 
भावे सो करत, मुँह आवै सो कहत ,कछु,
काहूकी सहत नाहिं , सरकस हेतु है।
 
तुलसी अधिक अधमाई हू अजामिलतें,
ताहूमें सहाय कलि कपटनिकेतु है।
 
जैबेको अनेक टेक , एक टेक ह्वौबेकी,
जो, पेट-प्रियपूत हित रामनामु लेतु है।।
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