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जागिए न सोइए, बिगोइए जनमु जायँ,
दुख, रोग रोइए, कलेसु कोह-कामको।
राजा-रंक , रागी औ बिरागी , भूरिभागी, ये,
अभागी जीव जरत, प्रभाउ कलि बामको।।
 
तुलसी! कबंध-कैसो धाइबो बिचारू अंध!
धंध देखिअत जग, सोचु परिनामको।
 
सोइबो जो रामाके सनेहकी समाधि-सुखु,
जागिबो जो जीह जपै नीकें रामनामको।।
 
(84)
 
बरन-धरमु गयो , आश्रम निवासु तज्यो,
त्रासन चकित सो परावनो परो-सो है।
 
करमु उपासना कुबासनाँ बिनास्यो ग्यानु,
बचन-बिराग, बेष जगतु हरो-सो है।।
 
गोरख जगायो जोगु, भगति भगायो लोगु,
निगम-नियोगतें सो केलि ही छरो-सो है।।
 
कायँ -मन-बचन सुभायँ तुलसी है जाहि,
रामनामको भरोसो, ताहिको भरोसो है।।
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