कलि वर्णन-1
 
(83)
 
 जागिए न सोइए, बिगोइए जनमु जायँ, 
दुख, रोग रोइए, कलेसु कोह-कामको। 
राजा-रंक , रागी औ बिरागी , भूरिभागी, ये,
 अभागी जीव जरत, प्रभाउ कलि बामको।। 
तुलसी! कबंध-कैसो धाइबो बिचारू अंध! 
धंध देखिअत जग, सोचु परिनामको। 
सोइबो  जो रामाके सनेहकी समाधि-सुखु, 
जागिबो जो जीह जपै नीकें रामनामको।।
(84) 
बरन-धरमु गयो , आश्रम निवासु तज्यो, 
त्रासन चकित सो परावनो परो-सो है। 
करमु उपासना कुबासनाँ बिनास्यो ग्यानु, 
बचन-बिराग, बेष जगतु हरो-सो है।। 
गोरख जगायो जोगु, भगति भगायो लोगु, 
निगम-नियोगतें सो केलि ही छरो-सो है।। 
कायँ -मन-बचन सुभायँ तुलसी है जाहि, 
रामनामको भरोसो, ताहिको भरोसो है।।