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नामविश्वास / तुलसीदास/ पृष्ठ 11
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कलि वर्णन-2
 
(85)
बेद -पुरान बिहाइ सुपंथु , कुमारग , कोटि कुचालि चली है।। 
कालु करालु, नृपाल कृपाल न , राज समाजु  बड़ोई छली है।। 
बर्न -बिभाग न आश्रमधर्म , दूनी दुख-दोष-दरिद्र-दली हैै।। 
स्वारथ को परमारथको कलि रामको नामप्रतापु बली है।।
 (86)
न मिटै भवसंकटु, दुर्घट है तप, तीरथ जन्म अनेक अटो।। 
कलिमें न बिरागु, न ग्यानु कहूँ, सबु लागत फोकट झूठ-जटो।। 
नटु ज्यों जनि पेट -कुपेटक कोटिक चेटक -कौतुक-ठाठ ठटो।। 
तुलसी जो सदा सुखु चाहिअ तौ, रसनाँ निसि -बासर रामु रटो।।
	
	