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नया पृष्ठ: मै पाऊँ तुमको जिधर भी निगाह करता हूँ मै जान बुझ कर कोई गुनाह करता …
मै पाऊँ तुमको जिधर भी निगाह करता हूँ
मै जान बुझ कर कोई गुनाह करता हूँ
किए हैं वक्त ने जो ज़ुल्म मेरे साथ कई
उन्हें मैं याद करूँ जब भी आह करता हूँ
मेरी निगाह पे छाई है ये पलकें किसकी
मै अपनी नज़्म से ख़ुद ही निकाह करता हूँ
हरेक पल मै तुम्हें देखता मंजिल की तरह
किसी भी सम्त अगर अपनी राह करता हूँ
वो नूर गैर की आंखों का है वो मेरा कहाँ
बुझे दीये से उजालों की चाह करता हूँ
मै जान बुझ कर कोई गुनाह करता हूँ
किए हैं वक्त ने जो ज़ुल्म मेरे साथ कई
उन्हें मैं याद करूँ जब भी आह करता हूँ
मेरी निगाह पे छाई है ये पलकें किसकी
मै अपनी नज़्म से ख़ुद ही निकाह करता हूँ
हरेक पल मै तुम्हें देखता मंजिल की तरह
किसी भी सम्त अगर अपनी राह करता हूँ
वो नूर गैर की आंखों का है वो मेरा कहाँ
बुझे दीये से उजालों की चाह करता हूँ