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मै पाऊँ तुमको जिधर भी निगाह करता हूँ / त्रिपुरारि कुमार शर्मा
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मै पाऊँ तुमको, जिधर भी निगाह करता हूँ
मै जानबूझकर कोई गुनाह करता हूँ
किए हैं वक़्त ने जो ज़ुल्म मेरे साथ कई
उन्हें मैं याद करूँ जब भी आह करता हूँ
मेरी निगाह पे छाई है ये पलकें किसकी
मै अपनी नज़्म से ख़ुद ही निक़ाह करता हूँ
हरेक पल मै तुम्हें देखता मंज़िल की तरह
किसी भी सम्त अगर अपनी राह करता हूँ
वो नूर ग़ैर की आ~मखों का है वो मेरा कहाँ
बुझे दीये से उजालों की चाह करता हूँ