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* [[अरण्यकांड पद 26 से 30 तक/पृष्ठ 1]]किष्किन्धाकाण्ड आरंभ * [[अरण्यकांड पद 26 से 30 तक/पृष्ठ '''ऋष्यमूकपर राम''' भूषन बसन बिलोकत सियके। प््रेाम-बिबस मन,कंप पुलक तनु, नीरजनयन नीर भरे पियके।1। स्कुचत कहत, सुमिरि उर उमगत, सील सनेह सुगुनगन तियके। स्वामि दसा लखि लषन सखा कपि , पिघले हैं आँच माठ मानो घियके। 2]]* [[अरण्यकांड पद 26 से 30 तक/पृष्ठ 3]]* [[अरण्यकांड पद 26 से 30 तक/पृष्ठ 4]]सोचत हानि मानि मन गुनि गुनि गये निघटि फल सकल सुकियके। वरने जामवंत तेहि अवसर बचन बिबेक बीररस बियके।3।। धीर बीर सुनि समुझि परसपर, बल-उपाय उघटत निज हियके। तुलसिदास यह समउ कहेतें कबि लागत निपट निठुर जड़ जियके।4।* [[अरण्यकांड पद 26 से 30 तक/पृष्ठ 5]]
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