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{{KKRachna
|रचनाकार=द्विज
}}
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|पीछे=आज सुख सोवत सलौनी सजी सेज पैं / शृंगार-लतिका / द्विज
|आगे=मेल्यौ उर आँनद अपार मैन सोवत हीं / शृंगार-लतिका / द्विज
|सारणी=शृंगार-लतिका / द्विज/ पृष्ठ 1
}}
<poem>
'''मनहरन घनाक्षरी'''
(''वसंत से प्रकृति में परिवर्तन का अर्द्धजाग्रत अवस्था में वर्णन'')
गुंजरन लागीं भौंर-भीरैं केलि-कुंजन मैं, क्वैलिया के मुख तैं कुहूँकनि कढ़ै लगी ।
’द्विजदेव’ तैसैं कछु गहब गुलाबन तैं, चहकि चहूँघाँ चटकाहट बढ़ै लगी ॥
लाग्यौ सरसावन मनोज निज ओज रति, बिरही सतावन की बतियाँ गढ़ै लगी ।
हौंन लागी प्रीति-रीति बहुरि नई सी नव-नेह उनई सी मति मोह सौं मढ़ै लगी ॥२॥
</poem>
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'''मनहरन घनाक्षरी'''
(''वसंत से प्रकृति में परिवर्तन का अर्द्धजाग्रत अवस्था में वर्णन'')
गुंजरन लागीं भौंर-भीरैं केलि-कुंजन मैं, क्वैलिया के मुख तैं कुहूँकनि कढ़ै लगी ।
’द्विजदेव’ तैसैं कछु गहब गुलाबन तैं, चहकि चहूँघाँ चटकाहट बढ़ै लगी ॥
लाग्यौ सरसावन मनोज निज ओज रति, बिरही सतावन की बतियाँ गढ़ै लगी ।
हौंन लागी प्रीति-रीति बहुरि नई सी नव-नेह उनई सी मति मोह सौं मढ़ै लगी ॥२॥
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