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}}
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'''मनहरन घनाक्षरी'''
''(ऋतुराज के आगमन से सहचरों को अतिशय आनंद की प्राप्ति का वर्णन)''

पाँखुरी लै साजी सेज सेवती की बेलिन, चमेलिन हूँ सरस बितान-छबि छाई है ।
फैल्यौ चहूँ गहब-गुलाबन कौ गंध धूरि, धूँधरित सुरभि-समीर सुखदाई है ॥
चारयौं ओर कोकिल-चकोर-मोर-सोरन सौं, और छिति छोरन अनंद अधिकाई है ।
आज ’ऋतुराज’ के समागम के काज होत, धाम-धाम बेलिन कैं आनँद-बधाई है ॥२९॥
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