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{{KKRachna
|रचनाकार=एम० के० मधु
|संग्रह=बुतों के शहर में/ एम० के० मधु
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<poem>
इन दिनों मेरी सारी कविताएंकविताएँ
तुम्हारे इर्द गिर्द घूमती हैं
इन दिनों धूप का एक गोला
बार-बार तुम्हारी पलकों की छांव छाँव से टकरा कर
मेरी खिड़की पर आ गिरता है
मुझे उस पुल पर चढ़ने को मजबूर करता है
काश! हॉलीवुड का स्पाइडर -मैन होता या सुपर -मैनतुम्हारे कंगूरे कँगूरे से लटकता झूलता रहता
तुम्हारे निज के मौसम में
सूराख बनाता रहता
चुरा कर लाता
निज की मरुभूमि पर
पेड़ों की पांत पाँत लगाते
दौड़ लगाता रहता
तय करता रहता
एक अन्तहीन दूरी
शब्द से निःशब्द तक।तक ।
</poem>
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