भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
परवाह नहीं
परवाह नहीं है अब
अंजाम क्या होगा
अब तो रण का समय है
आगाज़ होगा
हम पर ऊँगली उठाई तो
इस बार हाथ नहीं काटेंगे
गर्दन उखाड़ देंगे
जवाब वो होगा
जितना जी सके जियें,इस मात्रभू के लिए
फिर मिट जाये वतन के वास्ते
अंदाज़ वो होगा .......
अंजाम क्या होगा
अब तो रण का समय है
आगाज़ होगा
हम पर ऊँगली उठाई तो
इस बार हाथ नहीं काटेंगे
गर्दन उखाड़ देंगे
जवाब वो होगा
जितना जी सके जियें,इस मात्रभू के लिए
फिर मिट जाये वतन के वास्ते
अंदाज़ वो होगा .......