भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सदस्य:Madhur sharma

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

परवाह नहीं है अब अंजाम क्या होगा अब तो रण का समय है आगाज़ होगा हम पर ऊँगली उठाई तो इस बार हाथ नहीं काटेंगे गर्दन उखाड़ देंगे जवाब वो होगा

    जितना जी सके जियें,इस मात्रभू  के लिए 
     फिर मिट जाये वतन के वास्ते 
      अंदाज़ वो होगा  .......