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12:27, 20 जुलाई 2011
<poem>
जो तुम्हें इष्ट हैबनो मतवह अब सफाई की कोई ज़रूरत नहीं होगा।तुम ने ये बखेड़ा किसलिए किया सो मुझे पता है।
मैं खुब जानता हूँऔर तुम्हारा अहं तुष्ट हुआ भीसृष्टिपर वहीं तुम चूक गये, प्यारेलाल !तुम्हारी भी विवशता हैजब मेरा सिरकृपा तुम्हारें चरणों पर टिकातुम नहींसमझ पायेतुम्हें उस की तलाश थीकि यह मैं नहीजो तुम्हें पूरा करेभय है-तुम्हारा ही दियाऔर सार्थक भी।जिसे सहारा चाहिएजैसे भूख को रोटीप्यास को पानी।
वह अर्थ-मुझे पता हैऔर तुममुझ में,जो ईश्वर होने जा रहे थेमेरे दर्दएक वस्तु, मेरे समर्पण में है !एक जिंस बन कर रह गये।
अधूरे होने का एक दर्द हैइसे तुम्हारी नियति कहूँऔर अर्थ भीया कर्मफलकि तुम भी तो उसे जानोजैसे मैं ने जाना है।अपने ही बुने जाल में फँसते चले गयेऔर तुम्हें जो इष्ट हैवह तो अब लखाव भी नहीं होगा।पड़ा !
(1969)
</Poem>
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