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नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजूरंजन प्रसाद |संग्रह= }} <poem> कितनी छोटी है हमार…
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{{KKRachna
|रचनाकार=राजूरंजन प्रसाद
|संग्रह= }}
<poem>
कितनी छोटी है हमारी धरती
कितना तंग है मनुष्यता का घेरा
कि अक्सर बड़ी हो जाती है
अपनी ही छाया
पार करता हूं जिसके
सीने से
ठीक बीचो-बीच।
(4.3.96)
</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=राजूरंजन प्रसाद
|संग्रह= }}
<poem>
कितनी छोटी है हमारी धरती
कितना तंग है मनुष्यता का घेरा
कि अक्सर बड़ी हो जाती है
अपनी ही छाया
पार करता हूं जिसके
सीने से
ठीक बीचो-बीच।
(4.3.96)
</poem>