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चढी घूँट भर ही, क़दम डगमगाया / गुलाब खंडेलवाल
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20:24, 11 अगस्त 2011
ये नादान दिल कुछ समझ ही न पाया
गुलाब! आज होने को
सबकुछ
सब कुछ
वही है
मगर उठ गया है बहारों का साया
<poem>
Vibhajhalani
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