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मेहराब थे फूलों के वे औरों के वास्ते
दम भर किसी के किसीके हम भी सहारे हुए तो क्या!
अब भी उन्ही उन्हीं बहार के रंगों में हैं गुलाब
हैं आपकी नज़र से उतारे हुए तो क्या!
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