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मुट्ठी में अब ये चाँद-सितारे हुए तो क्या! / गुलाब खंडेलवाल
Kavita Kosh से
मुट्ठी में अब ये चाँद-सितारे हुए तो क्या!
मरने के बाद आप हमारे हुए तो क्या!
वे लोग जा चुके जिन्हें फूलों से प्यार था
क़दमों पे अब ये बाग़ भी सारे हुए तो क्या!
जब डूबना है क्यों भला माँझी का लें एहसान!
दो हाथ और पास किनारे हुए तो क्या!
जब दिल में रह गया न तड़पने का हौसला
उन शोख़ निगाहों के इशारे हुए तो क्या!
मेहराब थे फूलों के वे औरों के वास्ते
दम भर किसीके हम भी सहारे हुए तो क्या!
अब भी उन्हीं बहार के रंगों में हैं गुलाब
हैं आपकी नज़र से उतारे हुए तो क्या!