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16:12, 26 अगस्त 2011 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=निशांत मिश्रा
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<poem>
भरोसा था जिन पर,
मुसीबत में साथ छोड़ा,
एक अपना साया ही था,
जो तब भी साथ था,
सब अपने धकेल रहे थे मुझे,
अंधेरों की ओर,
एक अपना साया ही,
दिखा रहा था उजाला मुझे,
अंधेरों से,
न मेरा वजूद नज़र आता, न साये का,
यही तो वजह थी,
मुझे उजाला दिखाने की,
रहता गर उजालों में मेरा वजूद,
मेरा साया भी तभी, साथ नज़र आता... </poem>
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