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जुस्तजू बोसा-ए-दिलदार नहीं थी, कि जो है
ज़िन्दगी हुस्न-ए-परस्तार नहीं थी, कि जो है
सब इसी मुल्क में रहते थे कभी मिल जुलकर
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