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नया पृष्ठ: मुझको तुझसे रंज नहीं है,<br /> तुझको मुझसे द्वेष नहीं!<br /> फिर हम क्यों …
मुझको तुझसे रंज नहीं है,<br />
तुझको मुझसे द्वेष नहीं!<br />
फिर हम क्यों लङते रहते हैं?<br />
जब किंचित भी क्लेश नहीं!!<br />
<br />
मेरी पीङा - तेरे आँसू,<br />
तेरा सुख - मेरी मुस्कान|<br />
तेरी राहें - मेरी मंजिल,<br />
मेरा दिल - तेरे अरमान|<br />
मेरा घर - तेरा चौबारा,<br />
तेरा कूचा - मेरी शान|<br />
दौनों ही कहते रहते हैं,<br />
मानव - मानव एक समान|<br />
<br />
फिर हम कैसे प्रुथक् हुए?<br />
जब मत मैं अन्तर लेश नहीं!<br />
फिर हम क्यों लङते रहते हैं?<br />
जब किंचित भी क्लेश नहीं!!<br />
<br />
कौन सनातन है? प्यारे -<br />
इस मुद्दे मैं कुछ जान नहीं|<br />
पारस्परिक समन्वय से,<br />
हम दौनों ही अनजान नहीं|<br />
क्या तुझको - क्या मुझको,<br />
वो सब पहली बातें ध्यान नहीं?<br />
दौनों जानें, कुछ इक बातें,<br />
होती कभी समान नहीं|<br />
<br />
कया फिजूल बातों से,<br />
तेरे दिल को पहुंचे ठेस नहीं?<br />
फिर हम क्यों लङते रहते हैं?<br />
जब किंचित भी क्लेश नहीं!!<br />
<br />
<br />
आ, पल भर मिल बैठ जरा,<br />
सुन ले मन की बातें मेरी|<br />
खुदगर्जों का बहिष्कार कर,<br />
बात सुनूंगा मैं तेरी|<br />
सुलझा लें गुत्थी,<br />
सदियों से,<br />
अनसुलझी हैं बहुतेरी|<br />
आज नहीं, तो कभी नहीं,<br />
कल फिर हो जायेगी देरी|<br />
<br />
क्या तेरे आराध्य देव का,<br />
एक नाम, 'अखिलेश' नहीं?<br />
फिर हम क्यों लङते रहते हैं?<br />
जब किंचित भी क्लेश नहीं!!<br />
तुझको मुझसे द्वेष नहीं!<br />
फिर हम क्यों लङते रहते हैं?<br />
जब किंचित भी क्लेश नहीं!!<br />
<br />
मेरी पीङा - तेरे आँसू,<br />
तेरा सुख - मेरी मुस्कान|<br />
तेरी राहें - मेरी मंजिल,<br />
मेरा दिल - तेरे अरमान|<br />
मेरा घर - तेरा चौबारा,<br />
तेरा कूचा - मेरी शान|<br />
दौनों ही कहते रहते हैं,<br />
मानव - मानव एक समान|<br />
<br />
फिर हम कैसे प्रुथक् हुए?<br />
जब मत मैं अन्तर लेश नहीं!<br />
फिर हम क्यों लङते रहते हैं?<br />
जब किंचित भी क्लेश नहीं!!<br />
<br />
कौन सनातन है? प्यारे -<br />
इस मुद्दे मैं कुछ जान नहीं|<br />
पारस्परिक समन्वय से,<br />
हम दौनों ही अनजान नहीं|<br />
क्या तुझको - क्या मुझको,<br />
वो सब पहली बातें ध्यान नहीं?<br />
दौनों जानें, कुछ इक बातें,<br />
होती कभी समान नहीं|<br />
<br />
कया फिजूल बातों से,<br />
तेरे दिल को पहुंचे ठेस नहीं?<br />
फिर हम क्यों लङते रहते हैं?<br />
जब किंचित भी क्लेश नहीं!!<br />
<br />
<br />
आ, पल भर मिल बैठ जरा,<br />
सुन ले मन की बातें मेरी|<br />
खुदगर्जों का बहिष्कार कर,<br />
बात सुनूंगा मैं तेरी|<br />
सुलझा लें गुत्थी,<br />
सदियों से,<br />
अनसुलझी हैं बहुतेरी|<br />
आज नहीं, तो कभी नहीं,<br />
कल फिर हो जायेगी देरी|<br />
<br />
क्या तेरे आराध्य देव का,<br />
एक नाम, 'अखिलेश' नहीं?<br />
फिर हम क्यों लङते रहते हैं?<br />
जब किंचित भी क्लेश नहीं!!<br />