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|रचनाकार=मनु भारद्वाज
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<Poem>
वफ़ा का सिलसिला मैंने हमेशा ही निभाया है
जिसे समझा था मैं अपना, हकीक़त में पराया है

जफ़ाओं का गिला कैसा, अदावत की शिकायत क्या
तेरा ग़म जब मिला मैंने कलेजे से लगाया है

जहाँ देखो, वहीँ बस खौफ है और खौफ की बातें
मै जिससे डर रहा हूँ वो तो बस मेरा ही साया है

वो शायद शहर में इंसानियत को ढूंढता होगा
जो अपनी हसरतों का गाँव तन्हा छोड़ आया है

इसे किस्मत ही कहते हैं कि दस्तक भी न दे पाया
'मनु' तेरा, तेरे दर तक पहुँचकर लौट आया है </poem>
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