भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
वफ़ा का सिलसिला मैंने हमेशा ही निभाया है / मनु भारद्वाज
Kavita Kosh से
वफ़ा का सिलसिला मैंने हमेशा ही निभाया है
जिसे समझा था मैं अपना, हकीक़त में पराया है
जफ़ाओं का गिला कैसा, अदावत की शिकायत क्या
तेरा ग़म जब मिला मैंने कलेजे से लगाया है
जहाँ देखो, वहीं बस खौफ है और खौफ की बातें
मै जिससे डर रहा हूँ वो तो बस मेरा ही साया है
वो शायद शहर में इंसानियत को ढूंढता होगा
जो अपनी हसरतों का गाँव तन्हा छोड़ आया है
इसे किस्मत ही कहते हैं कि दस्तक भी न दे पाया
'मनु' तेरा, तेरे दर तक पहुँचकर लौट आया है