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14:57, 16 सितम्बर 2011 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=दिनेश त्रिपाठी 'शम्स'
}}
<poem>
य़ूं हमेशा के जैसी वही धूप है ,
लग रही आजकल कुछ नयी धूप है .
झॆलकर शीत की सर्द तीखी चुभन ,
लग रही है बहुत डर गयी धूप है .
तट पे सागर के बेसुध है लेटी हुई ,
आजकल अनमनी , आलसी धूप है .
हम सरेआम जिससे लिपटकर मिले ,
ये वही गुनगुनी , मखमली धूप है .
इसका कोई भरोसा नहीं कीजिए ,
यार ये मतलबी , मौसमी धूप है .
</poem>