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{{KKRachna
|रचनाकार=दिनेश त्रिपाठी 'शम्स'
}}

<poem>
हादसे तीरगी हो गये ,
हौसले रोशनी हो गये .
आदमी हो गये जानवर ,
देवता आदमी हो गये .
रात भर जो थे अपने वही ,
सुबह को अजनबी हो गये .
आपने हमको छू भर दिया ,
और हम सन्दली हो गये .
हम ठहरते भला किसलिए ,
हम तो बहती नदी हो गये .
हम जो आये तो सब खुश हुए ,
आप क्यों मातमी हो गये .
पढ़ सको तो पढ़ो गौर से ,
‘शम्स’ खुद शायरी हो गये .
</poem>