|रचनाकार=दिनेश त्रिपाठी 'शम्स'
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दिल लुभाती रही रात भर चांदनी ,मुस्कुराती रही रात भर चांदनी . जाने किस मीत के प्रीत का गीत ही ,गुनगुनाती रही रात भर चांदनी . द्वार पर देख तारों की बारात को ,बस लजाती रही रात भर चांदनी . छोड़कर आ गयी नभ मगर भूमि पर ,छटपटाती रही रात भर चांदनी . ताल पर जाल किरणों का ले के भला ,
क्या फंसाती रही रात भर चांदनी ?
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