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{{KKRachna
|रचनाकार=वीरेन्द्र खरे 'अकेला'
|संग्रह=शेष बची चौथाई रात / वीरेन्द्र खरे 'अकेला'
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
मेरे भी हालात सुनो फिर कुछ कहना
पहले पूरी बात सुनो फिर कुछ कहना
माँ ने सिखलाया है कि दुश्मन की भी
कम से कम सौ बात सुनो फिर कुछ कहना
नव लेखन पर इतनी तीखी टिप्पणियाँ
मेरे चंद क़तात सुनो फिर कुछ कहना
गर तुम तड़पे हो तो मैं भी रोया हूँ
सारी सारी रात सुनो फिर कुछ कहना
सारा दोष हमारे सर मढ़ने वालो
उनके भी उत्पात सुनो फिर कुछ कहना
<poem>
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|रचनाकार=वीरेन्द्र खरे 'अकेला'
|संग्रह=शेष बची चौथाई रात / वीरेन्द्र खरे 'अकेला'
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मेरे भी हालात सुनो फिर कुछ कहना
पहले पूरी बात सुनो फिर कुछ कहना
माँ ने सिखलाया है कि दुश्मन की भी
कम से कम सौ बात सुनो फिर कुछ कहना
नव लेखन पर इतनी तीखी टिप्पणियाँ
मेरे चंद क़तात सुनो फिर कुछ कहना
गर तुम तड़पे हो तो मैं भी रोया हूँ
सारी सारी रात सुनो फिर कुछ कहना
सारा दोष हमारे सर मढ़ने वालो
उनके भी उत्पात सुनो फिर कुछ कहना
<poem>