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वार्ता:कविता कोश मुखपृष्ठ

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एक आस लगाये बैठा हूँ |
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== मेरे आशियाने में है , आशियाना ये किसका ? ==एक आस लगाये बैठा हूँ |
"एक दिन एक इंसान ने ,देखा आशियाना एक परिंदे का अपने आशियाने में ,,वो बोला उस परिंदे दुःख से ,मेरे आशियाने में मिला घाब है , आशियाना ये किसका ,"एक दिन एक इंसान ने ,पर मरहम लगाने बैठा हूँसाफ दिख रहा है , मुझे फसाना उसका ,अँधियारा आया तो काया हुआदेखा आशियाना एक परिंदे का अपने आशियाने रौशनी के इंतजार में ,,बैठा हूँवो बोला उस परिंदे से ,मेरे आशियाने में है , आशियाना ये किसका ,साफ दिख रहा है , मुझे फसाना उसका ,कभी इधर , कभी उधर ,तकते नयना जाने किधर , सुना परिंदे अपनों ने इस बात को ,रह सका न खामोश वो ,सुनाई कुछ इस तरह अपनी दश्तान को ,,,वो बोला ,,ठंडी हवा से सुकून लेके ,धरा से जीवन आसमां से पानी ,था नीला समंदर वो ,और पेड़ो से थी हरियाली ,,बस यही ठगा तो थी हमारी कहानी ,,,क्या हुआदूर जाता दिखता है उधर ,कुए का पानी बिकता है किधर ,नीला समुन्द्र रहा न अब नीला ,धानी रंग बचा न अब पूरा ,आश्मां ने फिर भी बदल लिए अपने रंग हैं हमराही बनकर बैठा हूँजाने किस बात का हो गया है असर ,पेड़ो पर से उठ गया हैं ठिकाना ,इंसानों ने जो काट के पेड़ो को ,अपना घर है जो बनाया ,जब मिला न हमें कही भी ठिकाना तभी एक गलती हुई तो हमने भी तेरे आशियाने को अपना आशियाना है बनाया ,क्या हुआउसे सुधारने बैठा हूँसुनकर उस परिंदे की दस्ता ,हो गया भावुक इन्सान वो ,और सोचने लगा मन ही मन वो ,दोष नहीं है इसका कोई ,भोग रहा हैं हमारी ही गलतियों का नतीजा बेजुबान ये ........."'''मोटा पाठ'''एक आस लगाये बैठा हूँ |