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Kavita Kosh से
खेल रहा बाल रवि
कमसिन पहाड़िन की
गोरी हथेली पर।
घेर में किरणों के
शिशु हो मचल रहा
उलझे हैं तार-तार
प्रेम की पहेली पर।
पंछियों के नीड़ों में
उग आया शोर
चढ़ रही है ‘‘सीढ़ियाँ‘‘"सीढ़ियाँ"
पर्वत की ओर
यौवन का रंग चढ़ा
निर्जन के गाँव की
गूंगी सहेली पर।पर ।
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