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गोरी हथेली पर / तारादत्त निर्विरोध
Kavita Kosh से
ऊँची पहाड़ी पर
खेल रहा बाल रवि
कमसिन पहाड़िन की
गोरी हथेली पर ।
घेर में किरणों के
उछल रहा
जैसे गोद ममता की
लेने खिलौने को
शिशु हो मचल रहा
उलझे हैं तार-तार
प्रेम की पहेली पर ।
पंछियों के नीड़ों में
उग आया शोर
चढ़ रही है "सीढ़ियाँ"
पर्वत की ओर
यौवन का रंग चढ़ा
निर्जन के गाँव की
गूंगी सहेली पर ।