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|रचनाकार=सांवर दइया
|संग्रह=आ सदी मिजळी मरै / सांवर दइया
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[[Category:मूल राजस्थानी भाषा]]
{{KKCatKavita‎}}<poem>कुण बिछावै ऐ चौपड़ पासा, समझ तूं
कुण रचै छळ छंदां री भाषा, समझ तूं

बात लाखीणी-सूरज काटै अंधारो
पण बो कठै लेवै रातवासा, समझ तूं

अठै लागै लाय, बठै मुजरो चालू
कुण करावै ऐ राफड़रासा, समझ तूं

आ रेत थारी, औ पसीनो ई थारो
फेर घरां क्यूं भूख-तमासा, समझ तूं

आ तपती रेत ई आपणी औकात है
तपती रेत री तपती भाषा, समझ तूं
</poem>
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