भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कुण बिछावै ऐ चौपड़ पासा, समझ तूं / सांवर दइया
Kavita Kosh से
कुण बिछावै ऐ चौपड़ पासा, समझ तूं
कुण रचै छळ छंदां री भाषा, समझ तूं
बात लाखीणी-सूरज काटै अंधारो
पण बो कठै लेवै रातवासा, समझ तूं
अठै लागै लाय, बठै मुजरो चालू
कुण करावै ऐ राफड़रासा, समझ तूं
आ रेत थारी, औ पसीनो ई थारो
फेर घरां क्यूं भूख-तमासा, समझ तूं
आ तपती रेत ई आपणी औकात है
तपती रेत री तपती भाषा, समझ तूं