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23:44, 14 अक्टूबर 2011 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=सांवर दइया
|संग्रह=आ सदी मिजळी मरै / सांवर दइया
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{{KKCatKavita}}
<poem>चळू भर हेत लाधैला अठै कठै अबै
सावण-भादवा जावै सूखा जठै अबै
हाथ नै हाथ किंयां ओळखै तूं ई बता
पलट लेवै लोग आंख तकात अठै अबै
सौरम-सा रहता आं सांसां सागै जिका
इसड़ा लोग बोल बेली गया कठै अबै
मांय रह मन रो भेद लुकोता जग सूं
आंख छोड्यां पछै है ठिकाणो कठै अबै
क्यूं हेला पाड़ै कोई नीं आवणियो
चाल जीवड़ा चाल कुण थारो अठै अबै
</poem>
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