भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चळू भर हेत लाधैला अठै कठै अबै / सांवर दइया
Kavita Kosh से
चळू भर हेत लाधैला अठै कठै अबै
सावण-भादवा जावै सूखा जठै अबै
हाथ नै हाथ किंयां ओळखै तूं ई बता
पलट लेवै लोग आंख तकात अठै अबै
सौरम-सा रहता आं सांसां सागै जिका
इसड़ा लोग बोल बेली गया कठै अबै
मांय रह मन रो भेद लुकोता जग सूं
आंख छोड्यां पछै है ठिकाणो कठै अबै
क्यूं हेला पाड़ै कोई नीं आवणियो
चाल जीवड़ा चाल कुण थारो अठै अबै