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रेत / कन्हैया लाल भाटी

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{{KKRachna
|रचनाकार=कन्हैया लाल भाटी
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[[Category:मूल राजस्थानी भाषा]]
{{KKCatKavita‎}}<poem>आखी रात
बरसतो रैयो आभौ
आखी रात
घुळती रैयी रेत।

आखी रात
पचतो रैयो हाळी
आखी रात
महकती रैयी रेत।

आखी रात
हाळी बीजतो रैयो बीज
आखी रात
उथळ-पुथळ मचावती रैयी रेत।

परभातियै तारै सूं
थोड़ो’क सांत हुयो आभो
परभातियै तारै सूं पैली
सुपनो देखती रैयी रात।

भखावटै-भखावटै
आय उमट्‌यो कागलां रो टोळो।
बैवती रैयी रेत
रेत अर पाणी रै साथै बैयग्या सगळा।
</poem>
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