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{{KKRachna
|रचनाकार=सांवर दइया
|संग्रह=आखर री औकात / सांवर दइया
}}
[[Category:मूल राजस्थानी भाषा]]
{{KKCatKavita}}<poem>काटो तो म्है’र
घर-घर ऊगो है
भूख रो घास
०००
दवा लो घणी
ताव उतर्यो कोनी
बैद बदळां
०००
रोवै टींगर
बजावां झुणझुणा
हंसै ई कोनी
०००
हियै कांवळा
आठूं ई पौर कैवै
हिंसा ना करो
०००
नूंवी लहरां
जुगां जूना किनारा
टूटणा नक्की
०००
</poem>
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|संग्रह=आखर री औकात / सांवर दइया
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[[Category:मूल राजस्थानी भाषा]]
{{KKCatKavita}}<poem>काटो तो म्है’र
घर-घर ऊगो है
भूख रो घास
०००
दवा लो घणी
ताव उतर्यो कोनी
बैद बदळां
०००
रोवै टींगर
बजावां झुणझुणा
हंसै ई कोनी
०००
हियै कांवळा
आठूं ई पौर कैवै
हिंसा ना करो
०००
नूंवी लहरां
जुगां जूना किनारा
टूटणा नक्की
०००
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