और जब हम पहुँच जाते हैं एक जगह
वे चुपके से आ जाते हैं साथ-ऐसे
जैसे कहीं गये गए ही न हों
लोग जो साथ नहीं रोते
खिड़की की ओट में रोते हैं कातर होकर
ध्ुँध्लाई धुँधलाई आँखों सेऔर हमारी खुशी ख़ुशी में आ जाते हैं हँसतेजैसे कि कभी रोये रोए ही न हों।हों ।
</poem>