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शब्द जो साथ नहीं चलते / विमलेश त्रिपाठी
Kavita Kosh से
शब्द जो साथ नहीं चलते
पेड़ों की ओट से देखते हैं हमारा चलना
और जब हम पहुँच जाते हैं एक जगह
वे चुपके से आ जाते हैं साथ-ऐसे
जैसे कहीं गए ही न हों
लोग जो साथ नहीं रोते
खिड़की की ओट में रोते हैं कातर होकर
धुँधलाई आँखों से
और हमारी ख़ुशी में आ जाते हैं हँसते
जैसे कि कभी रोए ही न हों ।