भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
{{KKCatKavita}}
<poem>
पत्थर क्या नींद से भी ज्यादा पारदर्शी होता हैकि और भी साफ दिख जाता है
उस में भी अपना सपना
तुम जिसे उकेरने लगते हो-