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बाढ़ १९७५ / रमेश रंजक

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बादल बरस रहे बचकाने
आँख मूँद कर दिए जा रहे
पर्वत को सिरहाने
बादल बरस रहे बचकाने
करता-फिरता है मनमानी
बीन-बीन कर गाँव गिराए
छोड़े राजघराने
सारे नियम किए मटमैले
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