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सधे हाथों से / रमेश रंजक
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17:34, 14 दिसम्बर 2011
<poem>
बाल्टी जब कुएँ में गिर जाए
काँटे से निकालो
रस्सियों में गाँठ बाँधो
ढूँढ़ ले जब लौह अपनी जात
रस्सी को सम्भालो
कारगर हो जाए जब
बाल्टी जब कुएँ में गिर जाए
काँटे से निकालो
</poem>
अनिल जनविजय
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