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सधे हाथों से / रमेश रंजक
Kavita Kosh से
बाल्टी जब कुएँ में गिर जाए
काँटे से निकालो
रस्सियों में गाँठ बाँधो
थाह लो जल की
कुम्भकर्णी नींद टूटे
साँवले तल की
ढूँढ़ ले जब लौह अपनी जात
रस्सी को सम्भालो
कारगर हो जाए जब
अहसास, अनुसंधान
उस घड़ी बिल्कुल न देना
बुलबुलों पर कान
सधे हाथों से कुएँ की सान से
ऊपर उठा लो
बाल्टी जब कुएँ में गिर जाए
काँटे से निकालो