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कनाट प्लेस : एक शाम / रमेश रंजक

7 bytes removed, 07:20, 24 दिसम्बर 2011
<poem>
ज्योतिषी सितारों ने फैला दीं
श्वेत चादरें
फूटी क़िस्मत वाले क्या करें ?
(जिए या मरें ?)
देह धरे कदली की रात,
सड़कों पर घूमती
दूध्या उजाले की प्यास
पंखुरियाँ चूमती
मछली-सी झूम-झूलतीं
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