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कोठियों के बढ़ गए आकार हैं / बल्ली सिंह चीमा
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16:01, 14 जनवरी 2012
झुग्गियाँ तो आज भी लाचार हैं ।
तू मेरे महबूब की
हमश्क़्ल
हमशक़्ल
है,
ज़िन्दगी तुझ से गिले बेकार हैं ।
अनिल जनविजय
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