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कोठियों के बढ़ गए आकार हैं / बल्ली सिंह चीमा

कोठियों के बढ़ गए आकार हैं ।
झुग्गियाँ तो आज भी लाचार हैं ।

तू मेरे महबूब की हमशक़्ल है,
ज़िन्दगी तुझ से गिले बेकार हैं ।

तेरी यादों-सी नहीं है ज़िन्दगी,
ज़िन्दगी के ग़म बड़े दुश्वार हैं ।

इस नगर में भी है भूखी ज़िन्दगी,
तुम तो कहते थे भरे बाज़ार हैं ।

मेरे चेहरे पर जमा कुहरा न देख,
मेरे सीने में दबे अंगार हैं ।

आपके वादों का भी विश्वास क्या,
आप भी दिल्ली के नातेदार हैं ।

दुश्मनों की आँधियों से पूछ लो,
झोंपड़े अपने बड़े दमदार हैं ।