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05:30, 7 फ़रवरी 2012
<poem>बीत जब तक न प्रलय हो धरती पर जब तक सूरज पवमान रहे हैं दिन सतरंगी केवल ख़्वाबों में |चलो मुश्किलों जनगण मन और तिरंगे की का हल ढूँढें खुली किताबों आभा में हिन्दुस्तान रहे |
इन्हीं किताबों चरणों में हिन्द महासागर जन- गण सीने में यमुना -मन तुलसी की चौपाई गंगा हो ,इनमें ग़ालिब -मीर बाँहों में सतलज ,निराला ब्रह्मपुत्र रहते हैं परसाई मन में कश्मीर ,कलिंगा हो ,इनके भीतर जो खुशबू वो नहीं गुलाबों मथुरा ,गोकुल ,वृन्दावन में मुरली की मोहक तान रहे |
इसमें कई गिरिजाघर में माँ मरियम हों विधा के गेंदें -गुरुग्रंथ रहे गुरुद्वारों में ,गुड़हल खिलते हैं हो बिहू ,भांगड़ा कुचिपुड़ी बंजर मन को इच्छाओं के हर मौसम मिलते हैं |लैम्पपोस्ट में त्योहारों में ,पढ़िए या फिर दफ़्तरतेरे मन्दिर गीता , ढाबों मानस हर मस्जिद में कुरआन रहे |
तनहाई से हम भगत सिंह के वंशज हैं हमें किताबें दूर भगाती हैं ईमान हमारा बना रहे ,ज्ञान अगर बापू के सत्य अहिंसा का भी खुद सो जाए तो उसे जगाती हैं छत्र शीश पर तना रहे ,इनमें जो परवाज़ ,कहाँ जब कभी देश पर संकट हो होती सुर्खाबों में ?पहले मेरा बलिदान रहे |
इनको पढ़कर उत्तर से दक्षिण ,पूरब से -कई घराने गीत सुनाते हैं पश्चिम फैली हरियाली हो ,इनकी जिल्दों में जीवन के रंग समाते हैं भुखमरी ,गरीबी हटो दूर !ये न्याय सदन हर हाथ शहद की प्याली हो ,संसद के सारे भारत माँ तेरी मिटटी का प्रश्न -जबाबों में हर इक तिनका बलवान रहे |,</poem>