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ज़िस्म सन्दल, मिज़ाज फूलों का हमने देखा है, सर पे खुशबू के ताज फूलों का
किसकी ख़ुशबू है, तुम ही तुम हो जिधर निगाह करूँ किसकी यादें हैं
मेरे घर में है, राज फूलों का
आप पत्थर ही पूजिए बुतपरस्ती भली सही लेकिन
सुन तो लें एहतिजाज<ref>विरोध</ref> फूलों का
इनको पानी की चार बूंद बहुत ओस से ताज़गी मिले तो मिले आग से क्या इलाज फूलों का
हिन्दू-मुस्लिम बने फ़क़त इंसान सारे रंगों की क़द्र करना सीख फिर बनेगा समाज फूलों का
सब्र जो है यतीम बच्चों को खुशबूएँ बाँटती रहो ‘श्रद्धा’ बस हाँ यही है अनाज रिवाज फूलों का
पत्थरों पर भी चढ़ गए ‘श्रद्धा’
हाँ यही है रिवाज फूलों का
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